कुंडली में पितृदोष हो तो घबराएं नहीं, करें ये सर्वसिद्ध उपाय

हमारे पूर्वज, पितर जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं या उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाती। उनकी भटकती हुई आत्माओं की संतानों से अनेक आशाएं होती हैं। यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशीर्वाद देते हैं। यदि पितर असंतुष्ट रहे तो संतान की कुण्डली दूषित हो जाती है एवं वे अनेक प्रकार के कष्ट, परेशानियों का सामना करते हैं, सबकुछ उलटा-पुलटा होने लगता है। आइए जानें पितरों को शांत करने के उपाय-


पितृदोष के लक्षण
घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है।
घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
संतान
के विवाह में काफी परेशानीयां और विलंब होता है।
शुभ तथा मांगलिक कार्यों में काफी दिक्कतें उठानी पडती है।
अथक परिश्रम के बाद भी थोडा-बहुत फल मिलता है।
बने
-बनाए काम को बिगडते देर नहीं लगती।

इन सरल उपायों से होगा पितृदोष में लाभ
घर में कभी-कभी गीता पाठ करवाते रहना चाहिए।
प्रत्येक अमावस्या को ब्राहमण भोजन अवश्य करवायें।
ब्राहमण भोजन में पूर्वजों की मनपसंद खाने की वस्तुएं अवश्य बनायी जाए।
ब्राहमण भोजन में खीर अवश्य बनाए।
योग्य एवं पवित्र ब्राहमण को श्राद्ध में चांदी के पात्र में भोजन करवायें।
स्वर्ण दक्षिणा सहित दान करने से अति उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
पित्रृदोष की शांति करने पर सभी परेशानीयां अपने-आप समाप्त होने लगती है। मानव सफल, सुखी एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।
हर रोज कम से कम पच्चीस मिनट के लिए खिड़की जरुर खोलें, इससे कमरे से नकारात्मक उर्जा बाहर निकल जाएगी और साथ ही सूरज की रोशनी के साथ घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो जाएगा।
प्रत्येक मास का प्रथम दिन अग्निस्वरूप होता है। इस दिन अग्नि पूजा अवश्य करनी चाहिए।
अग्नि सब प्रकार के गुणों को प्रज्वलित करती है और वास्तु में अग्नि तत्त्व को क्रियाशील करती है। अग्नि की पूजा करने वाला तेजस्वी बनता है।
साल में एक दो-बार हवन करें। घर में अधिक कबाड़ एकत्रित ना होने दें।
शाम के समय एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं। सुबह-शाम सामुहिक आरती करें।
महीने में एक या दो बार उपवास करें।
घर में हमेशा चन्दन और कपूर की खुशबु का प्रयोग करें।
घर
या वास्तु के मुख्य दरवाजे में देहरी (दहलीज) लगाने से अनेक अनिष्टकारी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पातीं व दूर रहती हैं।
प्रवेश द्वार के ऊपर बाहर की ओर गणपति अथवा हनुमानजी का चित्र लगाना एवं आम, अशोक आदि के पत्ते का तोरण (बंदनवार) बाँधना भी मँगलकारी है।
जिस घर, इमारत, प्लाट आदि के मध्यभाग (ब्रह्मस्थान) में कुआं या गड्ढा रहता है वहां रहने वालों की प्रगति में रुकावट आती है एवं अनेक प्रकार के दुःख एवं कष्टों का सामान करना पड़ता है। अन्त में मुखिया का व कुटुम्ब का नाश ही होता है।
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