कालसर्प योग से डरे नहीं, ज्योतिष में है कुछ आसान उपाय
Astrology Articles I Posted on 29-09-2017 ,10:38:02 I by: Amrit Varsha
कालसर्प योग का संबंध राहु और केतु ग्रहों से होता है जो वक्र गति से चलते हैं। राहु को सर्प का मुख तथा केतु को सर्प की पूंछ भी माना जाता है। ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथ मानसागरी, बृहज्जातक और बृहत्पाराशर होराशास्त्र में कालसर्प योग या सर्पयोग का उल्लेख मिलता है। लग्नज पत्रिका में राहु और केतु की स्थिति सदैव एक दूसरे के आमने-सामने की होती है। यद्यपि राहु और केतु छाया ग्रह हैं, फिर भी इनकी युति या दृष्टि संबंध जिस ग्रह के साथ होता है, उसका प्रभाव इन पर पड़ता है। परंतु राहु या केतु ग्रह के अंश साथ वाले ग्रह से कम होने पर साथ वाला ग्रह ही प्रभावी रहता है और उसी के अनुसार अपना फल देता है।
कब बनता है कालसर्प योग
कालसर्प योग राहु से केतु और केतु से राहु की ओर बनता है लेकिन राहु से केतु की ओर बने कालसर्प योग का ही प्रभाव जातक पर रहता है। जब जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य में अन्य सभी सात ग्रह आ जाते हैं तो यह माना जाता है कि कुंडली कालसर्प योग वाली है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो कालसर्प योग की स्थिति में राहु और केतु के चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव इनके बीच आने वाले ग्रहों पर पड़ता है, जिसके कारण जातक पर शुभ-अशुभ प्रभाव देखने को मिलते हैं। माना जाता है कि कालसर्प योग पूर्व जन्म के किसी दोष अथवा पितृ दोष के कारण बनता है।
कालसर्प योग के प्रकार
ज्योतिष में बारह राशियों के आधार पर ही बारह प्रकार के प्रमुख कालसर्प योग बताए गए हैं। इनके नाम हैं अनंत, कुलिक, वासुकि, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़ या शंखनाद, पातक, विषधर या विषाक्त और शेषनाग कालसर्प योग। ये सभी कालसर्प योग क्रमशः कुंडली के प्रथम भाव से लेकर बारहवें भाव में राहु तथा उसके ठीक सामने वाले ग्रह में बैठे केतु ग्रह की स्थिति के अनुसार बनते हैं और अपना फल देते हैं।
कालसर्प योग के लक्षण और अशुभ प्रभाव
कालसर्प योग से प्रभावित होने वाले जातकों को प्रायः स्वप्न में सर्प दिखाई देते हैं, वहीँ अथक परिश्रम करने के बाद भी उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिलती। लग्न से बारह भाव तक बनने वाले विभिन्न कालसर्प योग जब अशुभ प्रभाव देते हैं तो जातक का जीवन कष्टमय हो जाता है। उसके जीवन में मानसिक अशांति, अस्थिरता, सम्मान की हानि, दुखमय वैवाहिक जीवन, संघर्ष, कलह, पारिवारिक सदस्यों से मतभेद एवं विरोध, व्यवसाय या नौकरी में व्यवधान व हानि, दुर्घटना या जटिल रोग भय, आत्म बल की कमी, अकाल मृत्य भय, अध्ययन में बाधा, परिवार की सदस्यों से वियोग, शत्रुओं से कष्ट, कर्ज का बने रहना जैसी समस्याएं सर उठाने लगती हैं।
जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प योग होता है उन्हें राहु की महादशा, अन्तर्दशा अथवा प्रत्यंतर दशा में अथवा शनि, सूर्य अथवा मंगल की दशा में तथा ग्रह गोचर में कुंडली में जब-जब कालसर्प योग बनेगा, सबसे अधिक कष्ट होता है। इसके कारण जातक को सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक और व्यावसायिक क्षेत्र में अनेक कठिनाइयों से जूझना पड़ता है।
कालसर्प योग के कारण हीने वाले कष्टों से निवारण के उपाय
कालसर्प योग के कष्टकारी प्रभाव से बचने के लिए भगवान् शिव तथा भगवान् विष्णु की श्रद्धा पूर्वक उपासना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। लग्न कुंडली में कालसर्प योग होने पर जातक को किसी पवित्र नदी के तट या संगम पर अथवा भगवान् शिव या नाग मंदिर में राहु काल एवं शुभ मुहूर्त और शुभ नक्षत्र में शांति उपाय के साथ-साथ रुद्राभिषेक करवाना चाहिए।
राहु से संबंधित वस्तुओं काली मसूर, सरसों का तेल, सीसा, काले तिल, काला कंबल, नीला वस्त्र, सूप, गोमेद, तलवार, अभ्रक, काले पुष्प या काले फल, स्वर्ण आदि का दान पात्र व्यक्ति को करने से भी कालसर्प योग का प्रभाव काम होता है।
बहते हुए जल में स्वर्ण या चांदी और तांबे से निर्मित सर्प का जोड़ा शुक्ल पक्ष के सोमवार या शिवरात्रि के दिन प्रवाहित करने, प्रत्येक सोमवार को भगवान् शिव की आराधना करने, शिव लिंग पर दूध और मिशरी अर्पित करने से भी कालसर्प योग के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
कस्तूरी, तारपीन, लोबान, चंदन का इतर तथा हाथी दांत की भस्म को जल में मिलाकर स्नान करने तथा शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करने से भी कालसर्प योग वाले जातकों को राहु की पीड़ा से शांति मिलती है।
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