आप जानते हैं कि कौनसी दिशा है शुभ और कौनसी अशुभ?
Astrology Articles I Posted on 23-10-2017 ,11:09:51 I by: vijay
अगर आप घर या कार्यस्थल में इन दिशाओं के लिए बताए गए वास्तु सिद्धांतों
का अनुपालन करते हैं, तो इसका सकारात्मक परिणाम आपके जीवन पर होता है। इन
आठ दिशाओं को आधार बनाकर आवास या कार्यस्थल एवं उनमें निर्मित प्रत्येक
कमरे के वास्तु विन्यास का वर्णन वास्तुशास्त्र में आता है।
पूर्व दिशा :
इस दिशा के प्रतिनिधि देवता सूर्य हैं। सूर्य पूर्व से ही उदित होता है। यह
दिशा शुभारंभ की दिशा है। भवन के मुख्य द्वार को इसी दिशा में बनाने का
सुझाव दिया जाता है। इसके पीछे दो तर्क हैं। पहला- दिशा के देवता सूर्य को
सत्कार देना और दूसरा वैज्ञानिक तर्क यह है कि पूर्व में मुख्य द्वार होने
से सूर्य की रोशनी व हवा की उपलब्धता भवन में पर्याप्त मात्रा में रहती
है। सुबह के सूरज की पैरा बैंगनी किरणें रात्रि के समय उत्पन्न होने वाले
सूक्ष्म जीवाणुओं को खत्म करके घर को ऊर्जावान बनाएं रखती हैं।
उत्तर दिशा :
इस दिशा के प्रतिनिधि देव धन के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा ध्रुव तारे की
भी है। आकाश में उत्तर दिशा में स्थित धू्रव तारा स्थायित्व व सुरक्षा का
प्रतीक है। यही वजह है कि इस दिशा को समस्त आर्थिक कार्यों के निमित्त
उत्तम माना जाता है। भवन का प्रवेश द्वार या लिविंग रूम/ बैठक इसी भाग में
बनाने का सुझाव दिया जाता है। भवन के उत्तरी भाग को खुला भी रखा जाता है।
चूंकि भारत उत्तरी अक्षांश पर स्थित है, इसीलिए उत्तरी भाग अधिक प्रकाशमान
रहता है। यही वजह है कि उत्तरी भाग को खुला रखने का सुझाव दिया जाता है,
जिससे इस स्थान से घर में प्रवेश करने वाला प्रकाश बाधित न हो।
उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) :
यह दिशा बाकी सभी दिशाओं में सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है। उत्तर व
पूर्व दिशाओं के संगम स्थल पर बनने वाला कोण ईशान कोण है। इस दिशा में
कूड़ा-कचरा या शौचालय इत्यादि नहीं होना चाहिए। ईशान कोण को खुला रखना
चाहिए या इस भाग पर जल स्रोत बनाया जा सकता है। उत्तर-पूर्व दोनों दिशाओं
का समग्र प्रभाव ईशान कोण पर पडता है। पूर्व दिशा के प्रभाव से ईद्गाान कोण
सुबह के सूरज की रोशनी से प्रकाशमान होता है, तो उत्तर दिशा के कारण इस
स्थान पर लंबी अवधि तक प्रकाश की किरणें पडती हैं। ईशान कोण में जल स्रोत
बनाया जाए तो सुबह के सूर्य कि पैरा-बैंगनी किरणें उसे स्वच्छ कर देती हैं।
पश्चिम दिशा :
यह दिशा जल के देवता वरुण की है। सूर्य जब अस्त होता है, तो अंधेरा
हमें जीवन और मृत्यु के चक्कर का एहसास कराता है। यह बताता है कि जहां आरंभ
है, वहां अंत भी है। शाम के तपते सूरज और इसकी इंफ्रा रेड किरणों का सीधा
प्रभाव पश्चिमी भाग पर पडता है, जिससे यह अधिक गरम हो जाता है। यही वजह है
कि इस दिद्गाा को द्गायन के लिए उचित नहीं माना जाता। इस दिशा में शौचालय,
बाथरूम, सीढियों अथवा स्टोर रूम का निर्माण किया जा सकता है। इस भाग में
पेड -पौधे भी लगाए जा सकते हैं।
उत्तर- पश्चिम (वायव्य कोण) :
यह दिशा वायु देवता की है। उत्तर- पश्चिम भाग भी संध्या के सूर्य की
तपती रोशनी से प्रभावित रहता है। इसलिए इस स्थान को भी शौचालय, स्टोर रूम,
स्नान घर आदी के लिए उपयुक्त बताया गया है। उत्तर-पद्गिचम में शौचालय,
स्नानघर का निर्माण करने से भवन के अन्य हिस्से संध्या के सूर्य की उष्मा
से बचे रहते हैं, जबकि यह उष्मा द्गाौचालय एवं स्नानघर को स्वच्छ एवं सूखा
रखने में सहायक होती है।
दक्षिण दिशा :
यह दिशा मृत्यु के देवता यमराज की है। दक्षिण दिशा का संबंध हमारे
भूतकाल और पितरों से भी है। इस दिशा में अतिथि कक्ष या बच्चों के लिए शयन
कक्ष बनाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में बॉलकनी या बगीचे जैसे खुले स्थान
नहीं होने चाहिएं। इस स्थान को खुला न छोड़ने से यह रात्रि के समय न अधिक
गरम रहता है और न ज्यादा ठंडा। लिहाजा यह भाग शयन कक्ष के लिए उत्तम होता
है।
दक्षिण- पश्चिम (नैऋत्य कोण) :
यह दिशा नैऋत्य अर्थात स्थिर लक्ष्मी (धन की देवी) की है। इस दिद्गाा
में आलमारी, तिजोरी या गृहस्वामी का शयन कक्ष बनाना चाहिए। चूंकि इस दिशा
में दक्षिण व पश्चिम दिशाओं का मिलन होता है, इसलिए यह दिशा वेंटिलेशन के
लिए बेहतर होती है। यही कारण है कि इस दिशा में गृह स्वामी का द्गायन कक्ष
बनाने का सुझाव दिया जाता है। तिजोरी या आलमारी को इस हिस्से की पश्चिमी
दीवार में स्थापित करें।
दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) :
इस दिशा के प्रतिनिध देव अग्नि हैं। यह दिशा उष्मा, जीवनशक्ति और ऊर्जा
की दिशा है। रसोईघर के लिए यह दिशा सर्वोत्तम होती है। सुबह के सूरज की
पैराबैंगनी किरणों का प्रत्यक्ष प्रभाव पडने के कारण रसोईघर मक्खी-मच्छर
आदी जीवाणुओं से मुक्त रहता है। वहीं दक्षिण- पश्चिम यानी वायु की
प्रतिनिधि दिशा भी रसोईघर में जलने वाली अग्नि को क्षीण नहीं कर पाती।
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