अनुभव पर आधारित 30 ऐसे आसान सूत्र जो बदल देंगे आपकी जिदंगी
Astrology Articles I Posted on 09-09-2017 ,14:52:43 I by: Amrit Varsha
जीवन को खुशनुमा बनाने और सुख-समृद्धि से भरने के लिए शास्त्रोंर में यूं तो ढेरों बातें बताई गई हैं लेकिन कुछ बाते विद्वानों और पंडितों के अनुभवों की भी हैं जो कि इतनी सटीक बैठती हैं कि व्य क्ति निहाल हो जाता है। आपको ऐसी भी अनभुवों पर आधार 30 ऐसी बातें बताई जा रही हैं, जिन्हें अपनाने से न केवल आपको जीवन में तुरंत लाभ मिलने लगेगा बल्कि प्रतिकूल ग्रह भी अनुकूल होने लगेंगे। ये बेहद सरल और आम उपयोग में ली जाने वाली बातें हैं-
1 घर में सेवा पूजा करने वाली जगह भगवान के एक से अधिक स्वरूप की सेवा पूजा कर सकते हैं। इसके कोई पाप नहीं लगता।
2. घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश जी नहीं रखें।
3. शालिग्राम जी की बटिया जितनी छोटी हो उतनी ज्यादा फलदायक है।
4. कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।
5. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं।
6. पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए।
7. पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं।
8. तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं।
9. आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं।
10. दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है।
11. कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के।
12. देवताओं को अंगूठे से नहीं मले।
13. चकले पर से चंदन कभी नहीं लगावें। उसे छोटी कटोरी या बांयी हथेली पर रखकर लगावें।
15. पुष्पों को बाल्टी, लोटा, जल में डालकर फिर निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिए।
16. श्री भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार या तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों की सात बार आरती उतारें।
17. श्री भगवान की आरती समयानुसार जो घंटा, नगारा, झांझर, थाली, घड़ावल, शंख इत्यादि बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्मा होता हैं। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती हैं उसमे असीम शक्ति होती हैं।
18. लोहे के पात्र से श्री भगवान को नैवेद्य अपर्ण नहीं करें।
19. हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही आहुति दें।
20. समिधा अंगुठे से अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए तथा दस अंगुल लम्बी होनी चाहिए।
21. छाल रहित या कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में वर्जित हैं।
22. पंखे आदि से कभी हवन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करें।
23. मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला नहीं जपनी चाहिए।
24. माला, रूद्राक्ष, तुलसी एवं चंदन की उत्तम मानी गई हैं।
25. माला को अनामिका (तीसरी अंगुली) पर रखकर मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना चाहिए।
26.जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं रखें।
27. तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिए।
28. माला का पूजन करके ही जप करना चाहिए।
29. ब्राह्मण को या द्विजाती को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना चाहिए।
30. जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति, दौड़ते हुए, शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं।
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