केवल एक चिन्ह घर में लगाने से खुशियां भर जाएंगी

प्राचीन समय से ही भवन के मुख्य दरवाजे के ऊपरी भाग तथा दरवाजे के दायीं तथा बायीं ओर किसी न किसी मांगलिक चिन्ह का प्रयोग किया जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि इन मांगलिक चिन्हों के उपयोग से घर में सुख, शांति, धन, सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। ऐसा ही एक मांगलिक चिन्ह है स्वास्तिक।


शुभ कार्यों के प्रतीक के रूप में स्वास्तिक का प्रयोग भारत में ही नहीं, बल्कि जर्मनी, यूनान, फ्रांस, जापान, सिसली, स्पेन, सीरिया, चीन, साइप्रस आदि देशों में किसी न किसी रूप में किया जाता है।
समय-समय पर घर, दूकान और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में आयोजित होने वाले धार्मिक आयोजनों और तीज-त्यौहारों के समय स्वास्तिक चिन्ह भवन के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर तथा पूजा स्थल पर हल्दी, रोली, आटा, चावल, अनाज, चंदन , गुलाल आदि के द्वारा बनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से स्वास्तिक को सुख, सौभाग्य, समृद्धि, शांति और मंगल का प्रतीक माना गया है।
स्वास्तिक शब्द के विश्लेषण से इसका अर्थ स्वस्ति या क्षेम करने वाला होता है। इसे भगवान श्री गणेश का लिप्यात्मक स्वरूप भी माना जाता है। स्वास्तिक की रचना दो रेखाओं से होती है। दोनों रेखाओं को मध्य में समकोण दशा में विभाजित करके उनके सिरों पर बायीं से दायीं ओर समकोण बनाते हुए आकार दिया जाता है।
स्वास्तिक के चारों सिरों पर समकोण पर मुड़ी हुई रेखाएं अनंत मानी गयी हैं। स्वास्तिक का बायां भाग भगवान श्री गणेश की शक्ति का स्थान बीजमंत्र होता है। इसकी चारों दिशाओं के अणिपति का प्रयोग अग्नि, इंद्र, वरुण और सोम देवताओं की पूजा-अर्चना करने तथा सप्तऋषियों का शुभ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जता है।
स्वास्तिक में बनाई जाने वाली चार बिंदियों में जगतजननी माता गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। वास्तु शास्त्र की दृष्टि से स्वास्तिक में चक्र की गतिशीलता बायीं से दायीं ओर अपनायी जाती है।
घड़ी की दिशा के अनुसार निर्धारित स्वास्तिक की रचना ऊर्जा का प्रचुर भंडार है। वैसे भी पृथ्वी को गति प्रदान करने वाली ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर ही रहता है। उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा मानते हुए इसे खुला और पवित्र बनाये रखने का परामर्श दिया जाता है। इसलिए मांगलिक अवसरों पर भवन में पूर्व, उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में स्वास्तिक का बनाना शुभ माना जाता है। इससे भवन पर अनिष्टकारी प्रभाव आसानी से नहीं होते, नकारात्मक ऊर्जा का निकास होता है और भवन में निवास करने वालों में भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावना बनी रहती है।
भवन के मुख्य द्वार पर गुरूवार के दिन शुद्ध हल्दी और दही के मिश्रण से बने स्वास्तिक पर दीपक प्रज्वलित करने अथवा स्वास्तिक के मध्य में थोड़ा सा गुड़ रखकर उसपर शहद की एक बूँद डालने से घर में सुख, शांति और पवित्रता का वातावरण बना रहता है।
स्वास्तिक बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस स्थान पर स्वास्तिक बनाया जाए वह शुद्ध व पवित्र हो। भवन की दीवार पर स्वास्तिक बनाते समय दीवार पर सफ़ेद खड़िया या चूने से दीवार को शुद्ध कर लिया जाए।
स्वास्तिक बनाने के लिए जिन पदार्थों का प्रयोग किया जाए वे भी अपवित्र न हों। बने हुए स्वास्तिक के आसपास गंदगी नहीं करनी चाहिए तथा सफाई करते समय स्वास्तिक से झाड़ू नहीं लगने देनी चाहिए।
मांगलिक आयोजन के संपन्न होने के पश्चात अगर स्वास्तिक को हटाना हो तो प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद स्वास्तिक में प्रयुक्त सामिग्री को एकत्र कर लेना चाहिए और बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।
पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ भवन में स्वास्तिक चिन्ह बनाने और विधि-विधान से उसका पूजन करने से धन, सम्मान, सुख, समृद्धि, सौभाग्य आदि प्राप्त होते हैं तथा ग्रह दोष एवं वास्तु दोष का शमन होता है।
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