कैसी भी हो घातक बीमारी, इस उपाय से होगी चंद दिनों में दूर
Astrology Articles I Posted on 21-11-2017 ,12:56:58 I by: vijay
आज की बदलती जीवनशैली के चलते एक से बढ़कर एक, नई-नई बीमारियां हमें
घेरने लगी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक से अधिक मारकेश की दशा,
अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा हमारे स्वास्थ्य और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ता है। असाध्य व गम्भीर व्याधियों से ग्रस्त व्यक्ति मृत्यु पर विजय
प्राप्त करने व असामयिक निधन से बचाव के लिए मृत्युंजय मंत्र का जप व होम
काफी लाभकारी माना गया है। तंत्रशास्त्र में मृत्युंजय मंत्र और गायत्री
मंत्र के योग से बना यह मंत्र मृत संजीवनी के नाम से जाना जाता है, जिसका
चैत्र मास में जप व होम करने से बड़ी से बड़ी बीमारियों से भी मुक्ति पाई
जा सकती है-
ओम हौं जूं स: ओम भूर्भूव: स्व: ओम तत्सवितुर्वरेण्यं
त्र्यम्बकं यजामहे भर्गो देवस्य धीमहि सुगंधिं पुष्टिवर्धन्म् धियो यो न:
प्रचोदयात्। उर्वारूकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ओम स्व: भुव: भू:
ओम स: जूं हौ ओम ।
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पत्नी को नींद न आए,नींद पूरी न हो तो समझोउल्लेखनीय है कि इस मंत्र के जप से असाध्य रोग कैंसर, क्षय,
टाइफाइड हेपिटाइटिस बी, गुर्दे पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों को
दूर करने में भी मदद मिलती है। इस मंत्र का प्रतिदिन विशेषकर सोमवार को 101
जप करने से सामान्य व्याधियों के साथ ही मानसिक रोग, डिप्रेशन व तनाव आदि
दूर किए जा सकते हैं।
तेज बुखार से शांति पाने के लिये औंगा की समिधाओं द्वारा
पकाई गई दूध की खीर से हवन करवाना चाहिए। मृत्युभय व अकाल मृत्यु निवारण के
लिए हवन में दही का प्रयोग करना चाहिए। इतना ही नहीं मृत्युंजय जप व हवन
से शनि की साढ़ेसाती, वैधत्य दोष, नाड़ी शेष, राजदंड, अवसादग्रस्त मानसिक
स्थिति, चिंता व चिंता से उपजी व्यथा को कम किया जा सकता है।
भयंकर बीमारियों
के लिए मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप व उसका दशमांश का हवन करवाना उत्तम
है।
प्राय: हवन के समय अग्निवास, ब्रह्मचर्य पालन, सात्विक भोजन व विचार, शिव
पर पूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जप के बाद बटुक
भैरव स्त्रोत का पाठ व इस दौरान घी का दीपक प्रज्जवलित रखना चाहिए।
जप के
साथ हवन व तर्पण और मार्जन के साथ ही साथ हवन की समाप्ति में ब्राह्मणों
को भोजन करवाकर दान देना उत्तम माना गया है। जप व हवन का कार्य चैत्र मास
में किसी पवित्र तीर्थ स्थल, शिवालय, नदी, सरोवर, पर्वतादि या के पास
शिवलिंग बनाकर करना चाहिए।
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