सभी तरह के कष्टों को दूर कर सकता है एक छोटा सा हवन

हिन्दू संस्कृति में प्रतिदिन अथवा ख़ास अवसरों पर होम यानी हवन करने को आवश्यक बताया गया है। जिस स्थान पर हवन किया जाता है, वहां बैठे लोगों पर तो उसका सकारात्मक असर पड़ता ही है, वातावरण में मौजूद रोगाणु और विषाणुओं के नष्ट होने से प्रकृति को भी लाभ पहुंचता है। क्योंकि हवन में प्रयुक्त होने वाली जड़ी बूटी युक्त हवन सामग्री, शुद्ध घी, पवित्र वृक्षों की लकड़ियां, कपूर आदि के जलने से उत्पन्न अग्नि और धुएं से वातावरण शुद्ध तो होता ही है, बुरी आत्माओं के असर का भय भी नहीं रहता है।


ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति

अगर किसी जातक की जन्म कुंडली में बैठे ग्रह अनिष्ट प्रभाव दे रहे हों तो विधिपूर्वक हवन करते रहने से जल्दी ही ग्रहों के शुभ प्रभाव मिलने लगते हैं। पीड़ा देने वाले ग्रह से संबंधित वार को ग्यारह या इक्कीस व्रत रखकर हवन करके पूर्णाहुति देने से रोग, शोक, कष्ट और बाधाओं का निवारण होता है। हवन में प्रयोग होने वाली सामग्री में बूरा, बतासे, सूखा गोला, सूखे मेवे, मिष्ठान घी आदि मिलाकर अग्नि में आहुति देने से अग्नि एवं सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। हवन पूरा होने के बाद श्रद्धानुसार पात्र व्यक्तियों को धन, अन्न, फल, वस्त्र, जीवनोपयोगी वस्तुएं दान करने से ग्रह शांति होती है। वहीँ हवन के समय तांबे के पात्र के जल का आचमन करने से हमारी इंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं तथा शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होने से मन प्रसन्न होता है।

वास्तु दोषों से मुक्ति
भवन निर्माण के समय रह गए दृश्य और अदृश्य वास्तु दोषों को दूर करने के लिए सबसे आसान तरीका हवन करना ही है। वास्तु के नियमों के अनुसार भवन में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों का संतुलन वहां रहने वालों को सुखी और संपन्न बनाये रखने में मदद करता है। सुगन्धित धूप, अगरबत्ती, शुद्ध घी का दीपक, हवन सामग्री, कपूर आदि पदार्थ इन पांचों तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भवन में किसी तरह का कोई वास्तु दोष न रह जाए , इसलिए निर्माण से पूर्व शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन और शिलान्यास में मंत्रोपचार के साथ हवन का महत्व है। इसी प्रकार भवन का निर्माण पूरा होने के बाद शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश के समय भी वास्तु पूजन के साथ हवन किया जाता है। जिससे कि भवन का आंतरिक और बाहरी वातावरण शुद्ध एवं पवित्र बना रह सके और उसमें रहने वालों को सभी तरह के कष्ट, रोग, दुःख और बाधाओं से मुक्ति मिल सके।

अग्निहोत्र से बाधाओं का निवारण
किसी आवासीय या व्यावसायिक भवन में वास्तुदोष के कारण आने वाली बाधाओं के निवारण के लिए प्रतिदिन प्रातः और सायं अग्निहोत्र विधि को अपनाया जाता है। वेदोक्त प्राण ऊर्जा सिद्धान्त पर आधारित अग्निहोत्र में पिरामिड आकार के तांबे के हवन कुंड या पात्र में गाय के गोबर से बने कंडे को प्रज्वलित करके शुद्ध गाय का घी, अक्षत, कपूर, गूगल, हवन सामग्री से मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है। इससे उत्पन्न ऊर्जा के प्रभाव से नकारात्मकता और वास्तु दोष दूर होने लगते हैं तथा घर परिवार में खुशहाली आने लगती है।

हवन करते समय की सावधानियां
हवन की अग्नि को कभी भी पंखे से प्रज्वलित नहीं करना चाहिए बल्कि बांस की बनी फुंकनी द्वारा मुख से फूंककर अग्नि प्रज्वलित की जा सकती है। हवन की अग्नि में अपवित्र सामग्री का प्रयोग निषिद्ध है। हवन कुंड के नीचे जमीन पर गिरी हवन सामग्री को उठकर हवन की अग्नि में नहीं डालना चाहिए। भूख, प्यास, क्रोध या मंत्रों का पूर्ण ज्ञान न होने पर तथा अग्नि के प्रज्वलित न होने पर हवन नहीं करना चाहिए। हवन की अग्नि के शांत होने के बाद राख आदि को पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।
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