क्या हैं विषपुत्र एवं विषकन्या योग...

यदि शनिवार, रविवार या मंगलवार के दिन कृत्तिका, आश्लेषा एवं शतभिषा नक्षत्र हो और द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी में से एक तिथि हो तो इस योग में जन्मी कन्या विषकन्या मानी जाती है। यदि विवाह के लिए कुंडली मेलन करते समय दो शुभ ग्रह वर के शत्रु में हों और वहीं दो ग्रह वधू के जन्म लग्न में हों तो विषयोग होता है। अगर वर के शत्रु ग्रह में जो ग्रह हो, वहीं ग्रह वधू के जन्म लग्न में हो तो भी विषयोग कहा जाता है। इसके अलावा कन्या के जन्म लग्न में शनि, पंचम स्थान में सूर्य एवं नवम स्थान में मंगल होने पर भी विषयोग बनता है। विषकन्या की तरह विषपुत्र योग के उतने दुष्परिणाम एवं सविस्तार वर्णन प्राप्त न होने पर भी मूल नक्षत्र के प्रारंभिक तीन चरण, आश्लेषा के अंतिम चरण, ज्येष्ठा के चौथे चरण तथा मघा के प्रथम चरण में जन्मा लडका विषपुत्र होता। उनेऊ धारण करने के बाद इस कुयोग के दुष्परिणाम खत्म हो जाते है-ऎसा कई ज्योतिर्विदों का मानना है। अर्थात जहां-जहां कुयोग बताए गए हैं, वहां-वहां कुयोगों के परिहार के जनन शांति का उपाय दिया गया है।

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