ज्योतिष में छिपे हैं खुद को स्वस्थ रखने के उपाय
Astrology Articles I Posted on 12-05-2017 ,09:16:16 I by: Amrit Varsha
खुद को फिट और स्वस्थ रखने के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं, कुंडली के अनुसार कुछ उपाय आपको अच्छी सेहत दे सकते हैं-
ज्योतिष शास्त्र में जन्म तिथि, जन्म समय और जन्म के स्थान का विशेष महत्त्व होता है। इन तीनों के आधार पर ही जातक की कुंडली बनाकर उसके जीवन और जीवन से जुडी सभी आवश्यक बातों का विश्लेषण किया जा सकता है। लेकिन कई बार जन्म तिथि अथवा जन्म का समय ज्ञात न होने के कारण कुंडली बना पाना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में यदि जातक को कोई रोग लग जाए और उचित उपचार के बाद भी ठीक न हो रहा तो कुंडली के अभाव में उस रोग की स्थिति के अनुसार किसी ग्रह के पीड़ित होने की संभावना का पता लगाकर मंत्र जप, पूजा-पाठ, रत्न आदि के द्वारा उस पीड़ित ग्रह की शांति के लिए प्रयास किया जा सकता है।
हड्डी टूटना, कान, आंख एवं ह्रदय रोग, बुखार, घबराहट, क्रोध, सिरदर्द, हाई ब्लड प्रेशर, दिमागी बुखार जैसे रोग सूर्य ग्रह के पीड़ित होने से हो सकते हैं। जबकि चंद्र ग्रह के पीड़ित होने से रक्त विकार, डाइबिटीज़, लो ब्लड प्रेशर, मानसिक रोग, पागलपन, मिर्गी, जुकाम, कफ, फेफड़े के रोग आदि होने की संभावना होती है।
मंगल ग्रह के पीड़ित होने से पित्त प्रकोप, पेट, मुख्य एवं आंत्र रोग, बवासीर, सिरदर्द, गुप्त रोग, आग या बिजली से जलना, फोड़े-फुंसी, स्नायु की कमजोरी आदि देखने को मिलती है। वहीँ त्वचा, गले एवं नाक के रोग, चेचक, घाव का शीघ्र न भरना, बौद्धिक असंतुलन जैसे रोग बुध ग्रह के पीड़ित होने का परिणाम हो सकते हैं।
गठिया, कमर दर्द, शरीर में सूजन, शारीरिक कमजोरी, कब्ज, यकृत का बढ़ना, मुख व कान के रोग, मोटापा आदि रोग गुरु ग्रह के पीड़ित होने से हो सकते हैं। गुप्त रोग, मूत्र विकार, कब्ज, नेत्र रोग, स्वप्न दोष, धातु क्षय, स्नायु की कमजोरी, अत्यधिक कामवासना जैसे रोग शुक्र ग्रह की पीड़ा से हो सकते हैं।
वहीं शनि ग्रह के पीड़ित होने से जोड़ों में दर्द, वायु रोग, रक्त की कमी, पैरालाइसिस, चोट, मोच, गंजापन आदि होने
का अंदेशा होता है।
राहु ग्रह के पीड़ित होने से शरीर में दर्द, रक्त की कमी, त्वचा एवं मानसिक रोग, बवासीर, हाथ और पैरों में सूजन, ह्रदय रोग, जहर से उपन्न रोग होने की संभावना होती है।
केतु ग्रह के पीड़ित होने के कारण पथरी, गर्भपात, गुप्त रोग, वात, पित्त व कफ से उत्पन्न रोग, पाचन तंत्र की कमजोरी, व्यवहार में परिवर्तन आदि हो सके हैं।
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