जब हों कुंडली में ऐसे योग तो विदेश यात्रा पक्का
Astrology Articles I Posted on 16-03-2017 ,23:39:31 I by: Amrit Varsha
जातक की जन्मकुंडली के विभिन्न भावों में स्थित राशि ग्रहों के अध्ययन से यह जाना जा सकता है कि अमुक जातक को यात्राएं पसंद हैं अथवा नहीं। कुंडली से यह भी ज्ञात हो सकता है कि जातक देश-विदेश की यात्रा करेगा या नहीं।
जब जातक की कुंडली में सूर्य तीसरे, आठवें और बारहवें भाव में रहता है, तब जातक प्रवास करता है। चन्द्र के दूसरे व नवें भाव में होने, मंगल के चौथे व ग्यारहवें भाव में होने, बुध के पहले व दूसरे भाव में होने, गुरु के तीसरे भाव में होने, शुक्र के तीसरे और ग्यारहवें भाव में होने, शनि के दूसरे एवं नवें भाव में होने तथा राहु के तीसरे भाव में होने से जातक विदेश में प्रवास कर सकता है।
इसी प्रकार सूर्य के वृश्चिक राशि में होने, मंगल के वृष, मीन व तुला राशि में होने, बुध के कर्क एवं मीन राशि में होने, गुरु एवं शुक्र के तुला राशि में होने, शनि, राहु और केतु के धनु व मकर राशि में होने पर भी जातक प्रवासी हो सकता है।
कुंडली में किसी एक भाव में सूर्य, बुध, शुक्र व शनि अथवा चन्द्र, गुरु, शुक्र व शनि बैठें हों तो जातक प्रवासी हो सकता है। चन्द्र ग्रह के लग्न या तीसरे भाव पर दृष्टि रखने से भी जातक को जन्म स्थान से दूर रहना पड़ सकता है।
कुंडली में अगर चन्द्रमा नवें भाव में हो, गुरु तीसरे भाव या वृश्चिक अथवा कन्या अथवा मकर राशि में हो, शुक्र नवें भाव में या कन्या राशि में हो तथा शनि कन्या राशि में हो तो जातक को समय-समय पर तीर्थाटन करने के अवसर मिल सकते हैं।
अगर जन्म कुंडली में किसी भी एक भाव में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु तथा शुक्र ग्रह अथवा सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह स्थित हों तो जातक तीरत यात्राएं करने वाला हो सकता है।
कुंडली में सूर्य के आठवें भाव में होने, मंगल के वृश्चिक राशि में होने, शुक्र के तीसरे व ग्यारह भाव में या तुला राशि में होने, शनि के धनु राशि में होने, राहु के चौथे, सातवें या नवें भाव में होने तथा केतु के कुम्भ राशि में होने पर जातक भ्रमणशील हो सकता है।
इसी प्रकार अगर बुध ग्रह की दृष्टि तीसरे भाव पर हो तो भी जातक को भ्रमण करने का शौक रहता है।
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